शूरवीरता सम्मान
बहादुरी और शौर्य की प्रशंसा की कला नवीन नहीं है। ये राष्ट्र के स्थायित्व का एक महत्वपूर्ण घटक बनाते हैं। इतिहास में शौर्यता को आदर और प्रशंसा के रूप में परिभाषित किया गया है। हमारी लोक कथाओं में भी बहादुरी को मान्यता देने की संकल्पना स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। महाभारत में धर्म के कारण एक सूरमा के रूप में मरने का गौरव स्वर्ग का सबसे आसान रास्ता माना गया। वास्तव में, युद्ध के मैदान में किसी भी प्रकार की मौत को गौरवशाली माना गया था।
चाहे यह एक राजवंश के नियुक्त प्रमुख की बात हो, या शहीदों। बहादुर आत्माओं के सम्मान में बनाए गए स्मारक हों या उन्हें दी गई उपाधियाँ, सम्मान के स्तंभ, नकद पुरस्कार या पदक आदि, बहादुरी को मान्यता देना एक अत्यन्त प्रतिष्ठित कार्य रहा है। भारत में ब्रिटिश राज की समाप्ति के साथ ब्रिटिश सम्मानों और पुरस्कारों की पुरानी संस्था का अंत हुआ। स्वतंत्र भारत में परमवीर चक्र, महावी चक्र, अशोक चक्र, शौर्य चक्र आदि सम्मान आरंभ किए गए।
अशोक चक्र
अशोक चक्र की श्रृंखला नागरिकों के लिए भी खुली है। राज्य सरकारों/संघ राज्य प्रशासनों और केन्द्रीय सरकार के मंत्रालयों/विभागों से प्राप्त नागरिकों के संदर्भ में सिफारिशों पर रक्षा मंत्रालय द्वारा केन्द्रीय सम्मानों पर विचार किया जाता है और रक्षा मंत्री की अध्यक्षता में गठित पुरस्कार दो वर्ष में एक बार दिए जाते हैं और इनकी घोषणा गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर की जाती है।
शौर्य चक्र
यह शौर्यता पुरस्कार दुश्मन का सामना करने से अलग परिस्थिति में दिया जाता है। यह पुरस्कार नागरिकों अथवा सेना कर्मियों को दिया जा सकता है तथा यह मृत्यु उपरान्त भी दिया जा सकता है।
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